Mahamana Madan Mohan Malaviya

Mahamana Madan Mohan Malaviya
Reminiscences

महामना मालवीय : उस दिन का वह चित्र !

 

डॉ वृंदावन लाल वर्मा

रायबरेली जिसके एक ताल्लुकदार ने श्री गणेश शंकर विध्यार्थी के उपर ताजीरात हिन्द की दफा 500 के अंतर्गत रायबरेली के मैजिस्ट्रेट के न्यायलय में मुकदमा चलाया | ‘प्रताप’ में एक संवाददाता ने उक्त ताल्लुकेदार के विरूद्ध कुछ आरोप लगाये थे | ताल्लुकेदार ने नोटिस दिया | विधार्थी जी के एक वकील मित्र ने,जो उन दिनों सत्याग्रह आन्दोलन में भाग ले रहे थे, नोटिस का उत्तर दिए कि संवाद सही है लड़ लेंगे मुकदमा! उसने दावा दायर कर दिया |

 

विद्यार्थी जी, श्री मैथिलीशरण गुप्त और मैं घनिष्ट मित्र थे | मुक़दमे की सलाह और पैरवी में सहायता करने के लिए मैं तैयार हो गया परन्तु पैरवी करने के लिए कोई बहुत चतुर अनुभवी वकील चाहिए था | तब मुझे वकालत आरम्भ किये छ: या सात वर्ष ही हुए थे |

 

      हम सब पंडित मोतीलाल नेहरू के पास पहुचे | उनसे बात चित की |

 

उन्होंने कहा- मैंने तो वकालत छोड़ दी है | इलाहाबाद के फौजदारी मुकद्दमो की सबसे अच्छी पैरवी करने वाले श्री हरिमोहन राय हैं | जिरह भी कमाल कि करते है, उन्हें वकील कर लो |’ थोड़ी सी और बाते करके हम लोग ‘आनंद भवन’ लौट आये | प्रवास स्थान पर निर्णय करने कि चर्चा हुई | अंत में निश्चित किया कि काशी चल कर महामना मालवीय जी कि भी सलाह ले ली जाय |

 

दुसरे ही दिन हम सब  मालवीय जी के दर्शन करने के लिए काशी यात्रा के लिए चल पड़े | जैसे ही समय मिला हम सब उनके पास जा पहुंचे | वह तब हिन्दू विश्वविध्यालय के एक भवन में रहते थे, पलंग पर लेटे,अस्वस्थ | निर्बल हो गए थे | हम सब ने उनके चरण छुए और आशीष पाई |

 

मैंने उनकी दर्शन पहले भी किये थे और झाँसी के ही एक बार उनका भाषण सुना था | ऐसा सुरीला कंठ शायद ही किसी व्याख्याता का रहा हो | अर्डले नौर्टन नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध वैरिस्टर कलकत्ता में वकालत किया करता था | मालवीय जी से आयु में बहुत जेठा था | उसने मालवीय जी की सुरीली वाग्मिता और निर्भीक प्रकृति कि कलकत्ते से प्रकाशित होने वाले ‘स्टेट्समैंन’ दैनिक में बड़ी प्रशंसा की थी | उस दिन याद आया कि उन विख्यात नेता, त्यागी, तपस्वी  महामना से आज कुछ बाते करने का सौभाग्य प्राप्त होगा | बात चित हुई मैंने मामले का ब्योरा देकर निवेदन किया-‘इलाहाबाद के श्री हरिमोहन राय वकील से पैरवी करवाने की सम्मति मिली है, आपका क्या आदेश है ?’

 

उन्होंने लेटे-लेटे ही उत्तर दिया-‘बिलकुल उपयुक्त है श्री राय |उन्ही को वकील रखो, तुम कुछ लिख रहे हो आजकल ?’ मुझे आश्चर्य हुआ | यह महापुरूष क्या मुझ सरीखे कोAnchor भी अपनी स्मृति में रखते हैं !

 

‘कभी-कभी छोटी मोटी कहानियाँ ही लिख पाता हूँ, पेट पालने के लिए वकालत करनी पड़ती है’-मैंने उत्तर दिया |

 

‘सो तो ठीक है, परन्तु अपने हिंदी पर विशेष ध्यान दिए रहना | वकालत तो बहुत लोग करते हैं | लिखते कितने हैं ?’ उन्होंने कहा |

 

मैं चुप रहा | मालवीय जी कुछ क्षण सोचकर बोले – ‘लिखने में बहुत सफलता प्राप्त करोगे, परन्तु मैं इस समय इस विषय पर अधिक नहीं कहूँगा | मुकद्दमे की बात करनी हैं | पहली बात यह है कि वादी के नोटिस का उत्तर ठीक नहीं दिया गया | बेतुका रहा |’ नविन जी ने तुरंत प्रश्न किया-‘तो क्या उत्तर देना चाहिए था, महाराज ?’ ‘उत्तर यह देना चाहिए था कि यदि ‘प्रताप’ में संवाद गलत छपा  है तो प्रतिवाद भेज दीजिये, हम प्रकाशित कर देंगे’, -- मालवीय जी न बतलाया |

 

मैंने समर्थन किया | नविन जी बहुत भावुक थे ही | तुरंत बोले-‘हम लोग महात्मा गाँधी के सत्याग्रह मार्ग के यात्री है ऐसा उत्तर कैसे देते ?’

 

विद्यार्थी जी सिर नीचा किये रहे | मालवीय जी उठ बैठे और बहुत हलकी तमक के साथ उन्होंने कहा – ‘गाँधी जी मुझे अपने बड़े भाई कि तरह मानते हैं | मैं उन्हें और उनके सत्याग्रह मार्ग को अधिक अच्छे प्रकार से जानता हूँ | सत्याग्रह का अर्थ इस तरह कि भूल करना नहीं है |’

 

मुक़दमे के सम्बन्ध में थोड़ी देर बात चित हुई और फिर हम सब उनके चरण स्पर्श करके लौट आये |

 

उस दिन का ओह चित्र आज भी मेरी स्मृति में ज्यों का त्यों बना हुआ है |

 


Mahamana Madan Mohan Malaviya